ओटावा। कनाडा की अर्थव्यवस्था कठिन दौर से गुजर रही है। देश में हाउसहोल्ड डेट यानी परिवारों पर कर्ज, अब जीडीपी के मुकाबले 103 फीसदी तक पहुंच गया है। इसका मतलब है कि कनाडा के नागरिकों पर देश की कुल जीडीपी से भी ज्यादा का कर्ज चढ़ गया है, जिसमें ब्याज और मूलधन दोनों शामिल हैं।
यह आंकडो दर्शाते हैं कि कनाडा के लोग अपनी खर्च योग्य आय से कहीं ज्यादा कर्ज में दबे हैं, जिससे देश की आर्थिक स्थिरता पर गंभीर संकट छा गया है। इस असंतुलन की वजह से कनाडाई लोगों को संपत्तियां खरीदने और अन्य जरूरी खर्चों के लिए अत्यधिक कर्ज लेना पड़ता है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह कर्ज देश की आर्थिक सेहत के लिए खतरनाक संकेत है। जिन देशों में हाउसहोल्ड डेट ज्यादा होता है, वहां परिवारों को वित्तीय अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है। कनाडा के बाद ब्रिटेन का नंबर आता है, जहां लोगों पर देश की जीडीपी का 80 फीसदी कर्ज है। अन्य देशों में यह अनुपात तुलनात्मक रूप से कम है, जैसे कि अमेरिका में 73 फीसदी, फ्रांस में 63 फीसदी, चीन में 62 फीसदी और जर्मनी में 52 फीसदी। वहीं, भारत में यह आंकड़ा 37 फीसदी है, जो कनाडा की तुलना में काफी कम है इससे पता चलता है कि भारतीय परिवारों पर कर्ज का बोझ कम है।
कनाडा की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हो रही है। अमेरिका में हाल में हुए राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद कनाडा की आर्थिक स्थिति पर और ज्यादा दबाव आने की संभावना है। ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान में आयात पर ऊंचे टैरिफ लगाने और नॉर्थ अमेरिका फ्री ट्रेड एग्रीमेंट की समीक्षा करने का वादा किया था। अगर ट्रंप यह कदम उठाते हैं तो कनाडा के सबसे बड़े ट्रेडिंग पार्टनर अमेरिका के साथ उसके व्यापार संबंध प्रभावित हो सकते हैं, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लग सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो देश को आर्थिक अस्थिरता का सामना करना पड़ सकता है। बढ़ते कर्ज के चलते कनाडाई लोगों को महंगाई और वित्तीय अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में यह देखना होगा कि कनाडा की सरकार इस संकट से निपटने के लिए क्या कदम उठाती है, ताकि देश आर्थिक संतुलन बना सके और लोगों को कर्ज के जाल से मुक्ति मिल सके।
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