अजरबैजान। बाकू में 2024 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (सीओपी-29) के तहत शांति, राहत और पुनर्प्राप्ति दिवस पर घोषणा की गई। इस दौरान प्रेसीडेंसी ने जानकारी दी कि भारत सहित 132 देशों ने सीओपी ट्रूस अपील में शामिल होने का फैसला लिया है। यह एक अहम वैश्विक पहल है जिसे एक हजार से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों, नागरिक समाज संगठनों, निजी क्षेत्र के प्रतिनिधियों और प्रभावशाली सार्वजनिक हस्तियों का समर्थन हासिल करना है।
सीओपी ट्रूस का उद्देश्य सम्मेलन में शामिल देशों से सैन्य गतिविधियों को रोकने का आग्रह करना है। यह पहल ओलंपिक ट्रूस से प्रेरित है, जो ओलंपिक खेलों के दौरान शत्रुता को निलंबित करने के लिए बनाई गई थी। 1990 के दशक से यह पहल फिर से लागू की गई थी और 1993 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसे आधिकारिक तौर पर पारित किया गया। अब सीओपी-29 ने इस विचार को जलवायु संकट से निपटने के लिए अपनाया है, जिसमें सम्मेलन के दौरान सैन्य अभियानों को रोकने की अपील की है।
सीओपी ट्रूस की अवधि नवंबर 2024 तक प्रस्तावित की गई है, जो सीओपी-29 के पूरे कार्यकाल के साथ मेल खाती है। इस अवधि में युद्धविराम से जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास किया जाएगा। युद्ध के पर्यावरणीय प्रभावों को रोकने के लिए यह पहल अहम है, क्योंकि वैश्विक सैन्य गतिविधियां और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन दोनों के बीच एक गहरा संबंध है। वार्षिक वैश्विक उत्सर्जन में इन सैन्य गतिविधियों का योगदान 5.5 फीसदी के आसपास है, जो विमानन और शिपिंग क्षेत्रों के संयुक्त उत्सर्जन से भी ज्यादा है। युद्धों के विनाशकारी पर्यावरणीय प्रभाव जैसे पारिस्थितिकी तंत्र का नुकसान, मिट्टी, जल और वायु का प्रदूषण, जलवायु संकट को और बढ़ा देते हैं। सीओपी ट्रूस पहल इस बात की जरुरत को बताता है कि शांति और पर्यावरणीय स्थिरता एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, और दोनों के बीच संतुलन बनाए रखने के प्रयास जरूरी है।
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