नई दिल्ली। पंजाब में पराली जलाने पर प्रतिबंध है। इसके साथ ही जागरुकता अभियान के तहत किसानों पराली नहीं जलाने के प्रति सतर्क किया जा रहा है। इसके बाद भी पराली की घटनाएं कम नहीं हो रहीं हैं बल्कि और अधिक बढ़ रही हैं।हालात ये हैं कि धान की कटाई का सीजन अभी शुरू ही हुआ है, और पंजाब में 30 सितंबर तक पराली जलाने की घटनाएं पिछले साल की तुलना में 10 गुना बढ़ चुकी हैं।
पंजाब में 31 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में धान की खेती होती है, और पराली जलाने की प्रथा ने किसानों को एक तरह की मजबूरी में डाल दिया है। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) ने 16 जिलों और 663 गांवों की पहचान की है, जहां पराली जलाने की घटनाएं सबसे अधिक होती हैं। इस साल, केंद्र सरकार ने पंजाब को फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीनों के लिए वित्तीय सहायता दी है और 1,30,851 मशीनें मुहैया कराई हैं। लेकिन किसानों का कहना है कि इन मशीनों तक उनकी पहुंच सीमित है। फिरोजपुर जिले के किसान लखविंदर सिंह ने बताया कि मशीनों पर मिलने वाली सब्सिडी का लाभ सही तरीके से नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि डीलर पहले ही कीमतें बढ़ा देते हैं।
हालांकि, केंद्र और राज्य सरकारें इस साल प्रदूषण की स्थिति में सुधार की उम्मीद जता रही हैं। उन्होंने इसके लिए सक्रिय कदम उठाने का प्रयास किया है, लेकिन किसानों का कहना है कि जमीनी स्तर पर अभी भी पर्याप्त उपाय नहीं किए जा रहे हैं। अमृतसर के अटारी गांव के किसान पुलविंदर मान ने कहा कि धान की कटाई के बाद गेहूं और अन्य रबी फसलों की बुवाई के लिए खेतों को साफ करने के लिए पराली जलाना उनके लिए एक त्वरित समाधान रहा है। मान का खेत हरी-भरी फसल से भरा है, लेकिन पराली जलाने की समस्या भी गहरी है, जो पंजाब, हरियाणा और नई दिल्ली में विवाद पैदा करती है।किसानों की यह समस्या उनके लिए विकल्प की कमी को दर्शाती है। पुलविंदर मान जैसे किसान कह रहे हैं कि सरकारी मदद के बिना वे कोई और उपाय नहीं कर सकते। केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों के बावजूद, अगर जमीनी स्तर पर किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो यह संभावना है कि पराली जलाने की घटनाएं इस साल भी बढ़ती रहेंगी, जिससे प्रदूषण की समस्या और गंभीर हो सकती है।
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